पृथ्वी की आंतरिक संरचना
पृथ्वी के धरातल का विन्यास उसकी भूगर्भिक प्रक्रियाओं से प्रभावित होता है और भूगर्भिक प्रक्रियाओं को समझने के लिए पृथ्वी की आंतरिक संरचना को जानना आवश्यक है|
पृथ्वी की संरचना का आंतरिक ज्ञान प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त किया जाता है-
प्रत्यक्ष स्रोत -1.खनन वेधन2.ज्वालामुखी उद्गार
अप्रत्यक्ष स्रोत- 1 तापमान 2 दबाव 3 गुरुत्वाकर्षण 4 उल्का पिंड 5 भूकंपीय तरंगे
भूकंपीय तरंगे- उपरोक्त स्रोतों में भूकंपीय तरंगों का अध्ययन पृथ्वी की आंतरिक संरचना का संपूर्ण चित्र प्रस्तुत करता है| भूकंप के आने पर तीन प्रकार की तरंगे उत्पन्न होती हैं-
- प्राथमिक तरंगे(P-WAVES) -यह सर्वाधिक तीव्र गति से चलने वाली तरंग है जो ध्वनि तरंगों के समान होती हैं तथा प्रत्येक माध्यम से गुजर जाती हैं इनकी गति ठोस पदार्थों में सर्वाधिक होती है|
- द्वितीयक तरंग(S-WAVES)- यह प्रकाश तरंगों के समान ऊपर नीचे गति करती हैं यह तरंगे तरल भाग में लुप्त हो जाती हैं इनकी गति भी तरंगों से कम होती है|
- धरातलीय तरंगे(L-Waves)- यह धरातलीय भाग पर चलती हैं तथा इनका अंकन सिस्मोग्राफ पर सबसे बाद में होता है परंतु यह सर्वाधिक विनाशकारी होती हैं|
भूकंपीय तरंगों के दो गुण पृथ्वी की आंतरिक संरचना की जानकारी देते हैं-
- पहला, दो दो भिन्न प्रत्यास्थता के सहारे तरंगों का प्रत्यावर्तन होता है और
- दूसरा वेग कम होने पर भूकंपीय तरंगों का अपवर्तन एवं दिशा में बदलाव होता है |
यदि पृथ्वी की संरचना समांगी होती तो भूकंपीय लहरें समान रूप से आगे बढ़ती| परंतु पृथ्वी में भिन्न-भिन्न घनत्व वाले अनेक स्तरों के कारण इन लहरों में अपवर्तन और परावर्तन हो जाता है|
भूकंपीय तरंगों के अध्ययन से निम्न तथ्य प्राप्त होते हैं-
- भूपटल से 30- 35 किमी की गहराई पर पी तरंग का वेग 6.9 किमी/ सेकंड से बढ़कर 7.9 कि मी/ सेकंड हो जाता है इसे मोहो असम्बद्धता कहते हैं|
- 100-200 कि मी की गहराई पर भूकंपीय तरंगों की गति मंद हो जाती है क्योंकि यह द्रवित/ प्लास्टिक अवस्था में है| इसे निम्न गति का मंडल या दुर्बलता मंडल कहते हैं
3 .2900 किमी की गहराई पर P- तरंग का वेग 13.6 कि मी/ सेकंड से घटकर 8 कि मी/ सेकंड हो जाता है एस तरंगे अधिकेंद्र से 103 डिग्री की दूरी पर लुप्त हो जाती है| यह घनत्व के 5.5 से बढ़कर10g/cm3 एवं पदार्थ के द्रवित अवस्था में होने के कारण होता है| इसे गुटेनबर्ग असम्बद्धता कहते हैं| एस लहरों के विपरीत पी तरंगे पृथ्वी के केंद्र तक सरलता से प्रवेश कर जाती हैं परंतु इनकी चाल केंद्रीय पिंड में घट जाती है और केंद्रीय पिंड में वह वहां मुड़कर बाहर निकल आती हैं|
- 5150 किमी की गहराई पर लेहमन असम्बद्धता पाई जाती है|
तथ्यों का विश्लेषण -भूकंपीय तरंगों से उत्पन्न असम्बद्धता रेखाओं एवं भूकंपीय तरंगों की गति एवं दिशा से पृथ्वी की आंतरिक त्रिस्तरीय संरचना, घनत्व में परिवर्तन एवं चट्टानों की अवस्था का ज्ञान होता है|
सीस्मिक तरंगों से प्राप्त तथ्यों का विश्लेषण कर पृथ्वी के आंतरिक स्वरूप को निम्न तीन स्तरों में विभाजित किया जा सकता है-
- भूपर्पटी- भूपर्पटी क्रस्ट पृथ्वी की सबसे बाहरी परत है जो सबसे पतली है| इसकी मोटाई के नीचे औसतन 5 कि मी है जबकि महाद्वीपों के नीचे यह 30 किमी तक है| हिमालय के नीचे यह लगभग 70 कि मी तक मोटी है| महाद्वीपीय क्रस्ट का घनत्व 2.67g/cm3 है जबकि सागर यह कृष्ट का घनत्व लगभग 3.0/cm3 है| महाद्वीपीय कष्ट ग्रेनाइट एवं एंडी साइट चट्टानों से निर्मित है जबकि महासागरीय क्रस्ट गैब्रो एवं बेसाल्ट से निर्मित है| क्रस्ट मैंटल से मोह संबद्धता रेखा द्वारा अलग होता है|
2. मेंटल- यह मोहो असम्बद्धता (33km) से गुटेनबर्ग असम्बद्धता (2900km) की गहराई तक है यह दो भागों में बटा हुआ है- पहला ऊपरी मेंटल और दूसरा निचला मेंटल|ऊपरी मेंटल मोहो असम्बद्धता से 700 कि मी तक अवस्थित है |ऊपरी मेंटल के ऊपरी भाग में पी तरंगों का वेग अपेक्षाकृत कम होना इसके कम घनत्व(3- 3.5)तथा निचले भाग में तीव्र वेग अधिक घनत्व(4.5 से अधिक) को दर्शाता है| किलोमीटर की गहराई पर रेपेटी असम्बद्धता द्वारा निचला मेंटल प्रारंभ होता है यहां घनत्व 5.5 g/cm3 हो जाता है तथा यह है ठोस अवस्था में है |यह गुटेनबर्ग असम्बद्धता द्वारा कोर से विभाजित है|
- कोर- यह पृथ्वी की सबसे आंतरिक परत है जिस के दो भाग हैं पहला बाहरी कोर और दूसरा आंतरिक कोर|
बाहरी कोर प्लाज्मा की अवस्था में है तथा इसका घनत्व 10g/cm3 है |यह मुख्य रूप से 88% निकल और फेरियम तथा 12% सिलिका या SiO2 युक्त चट्टानों से बना है |पृथ्वी के घूर्णन के साथ यह ठोस आंतरिक कोर के ऊपर निरंतर गतिशील है जिससे पृथ्वी में चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण हो रहा है| बाहरी एवं आंतरिक ओर के मध्य लेहमन की असम्बद्धता रेखा पाई जाती है|आंतरिक कोर 5150 किमी से 6371 किमी तक फैला है| ऊपर स्थित शैलो के भार से पड़ने वाले अत्यधिक दबाव के कारण आंतरिक कोर ठोस एवं दृढ़ है| इसमें निकल और फेरियम की मात्रा 99% है| यहां घनत्व बढ़ कर 13.5g/cm3 और तापमान 6000 डिग्री हो जाता है| इसे बैरी स्फेयर की संज्ञा दी जाती है|
पृथ्वी की आंतरिक संरचना के संबंध में प्राप्त उपरोक्त अनुमान एक साथ ही ज्ञान ही प्रदान करते हैं तथा अनेक प्रश्नों को अनुत्तरित छोड़ देता है| आता है यह आवश्यक है कि अनेक भूकंपीय स्टेशनों की स्थापना की जाए तथा पृथ्वी की आंतरिक संरचना को समझने के लिए शोध कार्यों को बढ़ावा दिया जाए जिससे पृथ्वी की जटिल संरचना की जानकारी प्राप्त हो सके|