प्रश्न. विश्व की प्रमुख स्थानीय पवनों का वर्णन कीजिए?
उत्तर. ऐसी पवने जो किसी स्थान विशेष पर चलती है तथा जिनके प्रभाव क्षेत्र सीमित होते हैं स्थानीय पवने कहलाती है|
उत्पत्ति- स्थानीय पवनों की उत्पत्ति का सर्व प्रमुख कारण स्थानीय तापांतर के कारण उत्पन्न वायु दाब की विभिन्नता है|
प्रकार- उत्पत्ति के स्थलाकृति क्षेत्रों के आधार पर मोटे तौर पर इन्हे निम्न भागों में बांटा जाता है –
स्थल समीर एवं जल समीर–
इन पवनों की उत्पत्ति जल एवं स्थल के विभेदी तापन के कारण होती है | दिन में स्थलीय भाग के अधिक गर्म होने एवं जलीय भाग के कम गर्म होने के कारण जलीय भाग पर उच्च वायुदाब तथा स्थलीय भाग पर निम्न वायुदाब उत्पन्न होता है परिणामस्वरूप दिन में जलीय भाग से स्थलीय भाग को पवन चलने लगती हैं | रात्रि में विकिरण के कारण ताप ह्रास स्थलीय भाग पर अधिक होता है जिससे वहां उच्च वायुदाब तथा जलीय भाग पर निम्न वायुदाब उत्पन्न हो जाता है |परिणाम स्वरूप स्थल से जल की ओर हवा चलती है |
जल समीर के कारण द्विपिय क्षेत्रों में अटोल मेघों का निर्माण होता है| यह स्थानीय समीर मध्य अक्षांशों में 15 से 50 डिग्री मध्य प्रवाहित होती हैं|उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में यह पवने तटीय भागों से 50 से 65 किलोमीटर तक चलती है तथा इनकी गति 25 से 40 किलोमीटर प्रति घंटा तक होती है| इन दोनों के कारण ही तटीय भागों में सम जलवायु पाई जाती है|
पर्वत समीर एवं घाटी समीर-
रात्रि काल में स्वच्छ आकाश के समय पर्वतीय ढाल विकिरण के कारण ठंडे हो जाते हैं जिससे उनके संपर्क में आने वाली वायु की परत भी ठंडी और भारी हो जाती है |परिणामस्वरुप वह नीचे की ओर ढाल के अनुरूप प्रवाहित होने लगती है| इस पवन को पर्वत समीर कहते हैं |ठंडी वायु के घाटी में नीचे बैठ जाने और उष्ण वायु के तुलनात्मक रूप से ऊपरी परत में होने के कारण तापीय व्युत्क्रमण की स्थिति भी उत्पन्न होती है| इन पवनों को कैटाबेटिक या गुरुत्व पवन भी कहते हैं|
स्वच्छ धूपदार मौसम में दिन के समय पर्वतीय ढाल गरम हो उठते हैं जिससे निम्न वायुदाब बनता है तथा घाटी वाले भाग अपेक्षाकृत ठंडे होने के कारण उच्च वायुदाब लिए होते हैं |परिणाम स्वरूप घाटी से पर्वतीय ढाल की ओर पवन चढ़ना प्रारंभ कर देती है जिसे घाटी समीर कहते हैं |इसके परिणाम स्वरूप कपसिले मेघों का निर्माण भी होता है|
क्षेत्रीयता के आधार पर उष्ण एवं शीतल स्थानीय पवने-
- गिबली- यह पवन लीबिया में दक्षिण से उत्तर की ओर चलने वाली गर्म पवन है जो मार्च से जून के मध्य चलती है |इसकी अधिकतम रफ़्तार 100 किलोमीटर प्रति घंटा तक हो जाती है| इन पौधों के कारण लीबिया का तापमान 48 डिग्री सेल्सियस के आसपास होता है |इनके परिणाम स्वरुप घास से सूख जाती हैं और उन में आग लग जाती है| सड़कों पर वाहनों के टायर फूटने से दुर्घटनाएं बढ़ जाती हैं |इन पौधों के प्रभाव से बचने के लिए इससे प्रभावित क्षेत्रों में लोग बेसमेंट बनाकर रहते हैं |
2.हरमटन- इस पवन की उत्पत्ति सहारा मरू प्रदेश में होती है जो गिनी की खाड़ी की ओर चलती है| यह वायु उष्ण एवं शुष्क होती है तथा जब यह गिनी तट के उष्ण आर्द्र क्षेत्रों में पहुंचती है तो अपनी शुष्कता के कारण लोगों को आद्रता से राहत दिलाती है तथा उनकी कार्य क्षमता में वृद्धि करती है| इसके कारण ही इसे डॉक्टर की संज्ञा भी दी जाती है |इसी प्रकार की एक पवन आस्ट्रेलिया के मरुस्थलीय प्रदेशों में भी चलती है जिसे ब्रिक फील्डर के नाम से जाना जाता है| मेसोपोटामिया तथा फारस की खाड़ी की और उत्तर-पूर्व से चलने वाली गर्म हवा को शामल कहा जाता है| यह अपने उत्तर पूर्वी सन्मार्ग हवाओं का ही विशिष्ट रूप है|
- चिनूक -यह शब्द उत्तरी अमेरिका के रेड इंडियंस की भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ होता है -बर्फ को खाने वाली हवा | रॉकी पर्वत के पूर्वी ढाल पर इन गर्म और शुष्क हवाओं की उत्पत्ति होती है| चक्रवात जनित हवाएं रॉकी पर्वत के सहारे ऊपर चढ़ती है तथा आद्र रुद्धोष्म दर( 6 डिग्री सेल्सियस प्रति हजार मीटर) से ठंडी होती है जबकि पर्वत केपूर्वी ढलानों पर यह शुष्क रुद्धोष्म दर(10 डिग्री सेल्सियस प्रति हजार मीटर ) से उतरती हुई गर्म हो जाती है |
पूर्वी ढलानों पर इन्हें चिनूक नाम से संबोधित किया जाता है| इस भाग में इन पवनों के कारण पर्वतीय भागों कि हिम एकदम पिघल जाती है तथा चरागाह हरे भरे हो जाते हैं तथा कृषि कार्य होने लगते हैं |
4.फॉन-यह चिनूक प्रकार की ही एक पवन है जो आल्प्स पर्वतों के सहारे स्विट्ज़रलैंड की घाटियों में शीतकाल नीचे उतरती है| गरम होने के कारण ये पवनें वहां बर्फ को पिघला कर घास के मैदान को खोल देती हैं और मौसम खुशनुमा हो जाता है|
5.लू – पश्चिम भारत में पश्चिम से पूर्व दिशा में ग्रीष्मकाल में अत्यंत शुष्क एवं गरम हवा चलती है जिन्हे लू कहा जाता है | इनके कारण प्रभावित भागों में तापमान 45 डिग्री से तक हो जाता है |कभी कभी ये इतनी तीव्र होती हैं की इनका प्रभाव रात में भी होता है |
भारत में लू प्रभावित क्षेत्र
6.सिराको- यह गर्म शुष्क तथा रेत से भरी हवा होती है जो सहारा के रेगिस्तान से उत्तर दिशा में भूमध्य सागर की ओर चलकर इटली स्पेन आदि में प्रविष्ट होती है| जब भूमध्य सागर पर चक्रवात (निम्न दाब) का आविर्भाव होता है तब यह अधिक सबल होती है| इन्हें मिस्र में खमसिन, लीबिया में गिबली, ट्यूनीशिया में चिल्ली आदि नामों से पुकारा जाता है| सिराको हवाओं के साथ लाल रेत की मात्रा भी अधिक होती है| जब यह हवाएं भूमध्य सागर को पार करती हैं तो नमी धारण कर इटली में कभी-कभी वर्षा करती हैं जिससे लाल रेत भी नीचे बैठती है तो ऐसा लगता है कि रक्त वृष्टि हो रही हो| इन पवनो से स्पेन इटली आदि में अंगूर तथा जैतून की फसलों को अपार क्षति होती है| यह तूफानी प्रकृति तथा रेत की आंधियों से युक्त होने के कारण दृश्यता को समाप्त कर देती हैं |
7.मिस्ट्रल -यह कैटाबेटिक पवन है जो शीतकाल में फ्रांस में रोन नदी की घाटी में उत्तर से दक्षिण की ओर चलती है|इसकी गति 60 किमी प्रति घंटा तक होती है जिसके आगमन के कारण घाटी में भारी कोहरा पड़ता है तथा खट्टे फलों के बाग प्रभावित हो जाते हैं |
8.ब्लीजार्ड- यह ध्रुवीय हवाएं बर्फ के कणों से युक्त होती हैं| इनके प्रवाह से वायु का तापमान -30 डिग्री से. तक घट जाता है जिसके कारण सतह बर्फ से आच्छादित हो जाती है| इनकी गति 80 से 96 किलोमीटर प्रति घंटा तक होती है |साइबेरिया में इन पवनो को बुरान कहते हैं |
उपरोक्त पवनों के अतिरिक्त स्थानीय पवने लगभग सभी देशों में पाई जाती हैं| संसार में लगभग 200 पवने अपने स्थानीय मौसम, मनुष्य एवं उसकी सामाजिक आर्थिक क्रियाओं को प्रभावित करती हैं| इन पवनों के साथ मानव ने अनुकूलन व समायोजन भी किया है|